भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक बड़ी सफलता मिली है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक की यात्रा और सुरक्षित वापसी ने देश के गगनयान मिशन की नींव को और मजबूत कर दिया है। यह पहली बार है जब भारत के अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण मानकों की वास्तविक अंतरिक्ष स्थितियों में परख हुई है।
मेडिकल प्रक्रिया की वास्तविक जांच
भारतीय वायु सेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल अनुपम अग्रवाल, जो इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (IAM) के कमांडेंट रहे हैं, ने बताया कि शुक्ला का मिशन केवल एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं था, बल्कि इससे जुड़ी हर चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक चयन प्रक्रिया की परख की गई। अग्रवाल के अनुसार, “जिन मानकों और परीक्षण विधियों को हमने विकसित किया था, वे अब सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में व्यवहार में आए हैं। यह एक संतोषजनक अनुभव है।”
IAM ने न केवल चयन की प्रक्रिया में भाग लिया, बल्कि मिशन से पहले व्यापक चिकित्सा और शारीरिक आंकड़े एकत्र किए। अब इन आंकड़ों के माध्यम से यह अध्ययन किया जाएगा कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण का मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या हमारी पद्धतियां सही दिशा में थीं।
अनुभव से मिले सबक और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी
भारत के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान का अनुभव सीमित रहा है, और यही कारण है कि शुक्ला की यह यात्रा खास मायने रखती है। अग्रवाल कहते हैं, “यह क्षेत्र अत्यंत जटिल है और कई विकसित देश अब तक इसे हासिल नहीं कर पाए हैं। हमारे लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग इस कार्यक्रम की सबसे मजबूत कड़ी है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मानव अंतरिक्ष उड़ान से जुड़ा अधिकांश ज्ञान साहित्य में खुलकर उपलब्ध नहीं है और इसे केवल प्रत्यक्ष अनुभव से ही समझा जा सकता है।
गगनयान और भविष्य की तैयारियां
गगनयान मिशन की ओर देखते हुए अग्रवाल ने IAM की भूमिका को बेहद अहम बताया। उन्होंने कहा कि जैसे अंतरिक्ष यान के लिए इंजीनियर होते हैं, वैसे ही मानव शरीर से जुड़े पहलुओं के लिए एयरोस्पेस मेडिसिन विशेषज्ञ होते हैं। ये विशेषज्ञ अंतरिक्ष यात्री के कपड़े, हाइजीन, ध्वनि, कंपन, तापमान जैसी तमाम मानवीय जरूरतों को ध्यान में रखकर अंतरिक्ष यात्रा को संभव बनाते हैं।
शुक्ला की वापसी और पुनः अनुकूलन प्रक्रिया
20 दिन की ऐतिहासिक यात्रा के बाद शुभांशु शुक्ला का स्पेसकैप्सूल ‘ग्रेस’ अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया तट के पास प्रशांत महासागर में दोपहर करीब 3 बजे सुरक्षित उतरा। 50 मिनट बाद, शुक्ला मुस्कुराते हुए कैप्सूल से बाहर आए, हालांकि उन्हें सहारा देकर चलाया गया।
स्पेस में लंबे समय तक रहने के बाद, शरीर को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के साथ फिर से सामंजस्य बैठाने में वक्त लगता है। अक्सर अंतरिक्ष यात्रियों को वापसी के बाद ‘रीकंडीशनिंग’ प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है ताकि उनकी मांसपेशियां और संतुलन फिर से सामान्य हो सकें।
राकेश शर्मा के बाद एक नई शुरुआत
राकेश शर्मा के 1984 में सोवियत संघ के मिशन के बाद यह पहली बार है कि कोई भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन तक गया है। शुक्ला की यह यात्रा केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक निर्णायक कदम है — जो अब 2027 में प्रस्तावित गगनयान मिशन की ओर तेज़ी से अग्रसर है।